बचपन की ज्यादातर स्मृतियों का धूमिल होना नियत है। निर्ममतापूर्वक कुछ स्मृतियाँ हमसे हाथ छुड़ा कर सदा के लिए विदा ले लेतीं हैं। मेरी माता का निधन मेरे जीवन में एक ऐसी अनिर्वचनीय घटना है जिसका ठीक-ठीक अर्थ मैं आज तक समझ नही पाया हूँ। यह त्रासदी तब घटित हुई जब मेरी आयु मात्र तीन वर्ष की थी। मुझे अपनी माता का चेहरा बिल्कुल याद नही लेकिन फिर भी अपने जीवन के ममता भरे उन तीन सालों में अर्जित एक स्मृति ऐसी है जिसे मैं आज तक नही भूल पाया हूँ- माँ की गोद का सानिध्य और मेरी उंगलियों में उलझा उनका आँचल। मेरी विडंबना यह रही कि आज तक मैं यह तक कल्पना नही कर पाया हूँ कि यदि मेरी माता जीवित रहतीं तो मैं उन्हें 'माँ' कहकर संबोधित कर रहा होता या 'मम्मी' या कुछ और? साथ ही कभी-कभी अपनी मानसिक निर्मित्ति में मैं उन विभिन्न परिस्थितियों की कल्पनाएँ करता हूँ जहां मेरी माँ मुझसे बातें कर रही होती हैं और मैं तय नही कर पाता हूँ कि माँ मुझसे कैसी बातें करतीं, और फिर एक के बाद एक परिदृश्य बदलते रहते और अचानक वास्तविक आनुभविक जगत में कोई हलचल इस मानसिक निर्मित्ति को भंग कर देती और मैं यथार्थ जगत में लौट आता हूँ। इस तरह मेरे लिए जीवन में माता का न होना एक ऐसी घटना है जो मेरे लिए न दुःख का विषय है न अभाव का। मैंने इतनी कम आयु में माता को खोया है कि मैं इस घटना के प्रभाव का सही-सही मूल्यांकन करने में असमर्थ हूँ।
लेकिन कुछ स्मृतियाँ आपका साथ कभी नही छोड़ती हैं और समय के साथ-साथ सघन होती जाती हैं। ये स्मृतियां आप पर ऐसा असाधारण प्रभाव छोड़तीं हैं जिनसे आप कभी मुक्त नही हो सकते हैं। मेरे लिए पिता की मृत्यु एक ऐसी ही भावोद्रेक और चुनौतीपूर्ण स्मृति है।
हमारे जीवन के सबसे प्रिय लेकिन क्रोधी, अकेले किंतु शक्तिशाली और साधारण लेकिन अनमोल व्यक्तित्व का अंत हमारे लिए किसी यातनापूर्ण गिरावट से कम नही था। पिता की स्मृति एक ऐसे तेजोदृप्त औदार्यदाता के रूप में सजीव है जिन्होंने हमारा पोषण करते हुए संघर्षों की समिधा में अपने शेष जीवन की आहुति दे डाली। इतने कम समय में पिता रूपी ढाल से संवृत हमारे सुभेद्य बचपन के एकाएक उद्घाटन ने हमें सांसारिक यथार्थ का वह स्वाद चखाया जिसकी कड़ुवाहट हमारे अस्तित्व के कण-कण में अंतर्भुक्त हो चुकी है।
उस वक्त अपनी सोलह वर्ष की आयु में मैं न तो इतना परिपक्व था कि ऐसी घटना का साक्षी बन सकूं न ही इतना नादान की इस मृत्यु से उपजे कर्तव्यों के प्रति अनभिज्ञ रह सकूँ। निर्जन आवास में अपने से तीन साल बड़ी बहन का एकमात्र संरक्षक बन कर रहना तलवार की धार पर चलने से कम नही था। लेकिन जीवनदाता पिता ने अपनी मृत्यु के बाद भी हमारा परित्याग नही किया बल्कि पाथेय के लिये उनसे प्राप्त रिक्थ ने हमें एक ऐसे जीवन से लड़ने के लिए संबल दिया जिसके अभाव में हमारा नष्ट होना सुनिश्चित था। उस पिता से हम सम्भवतः कभी उऋण तो नही हो सकते लेकिन उनकी आत्मा के तृषातोषण के निमित्त मात्र भी बन पाएं तो यह हमारा सौभाग्य होगा।
इन्ही भावों से निःसृत यह कविता उन्हें समर्पित करता हूँ :
लेटे हैं पिता भूमि पर, जैसे कोई वृक्ष निराधार
अनावृत देह, गंभीर मुख, निर्लिप्त, निर्विकार
हम ताकते अपलक, समझने में असमर्थ
नही कोई आभास, हुआ यह क्या अनर्थ
माता का जब हुआ निधन,
विवाह का था नवम वर्ष
बच्चे दो, जिन्हें पालने का नही कोई अनुभव
घर बैठे भोजन पकाना तुम्हारे लिए असंभव
फिर भी तुमने ठुकरा दिया प्रस्तावित पुनर्विवाह
हमारी विमाता लाना तुम्हे कभी स्वीकार न हुआ
शुरू हुआ जीवन के सुख-दुःख का अंतहीन क्रम
गढ़ने को हमारा जीवन किये तुमने अनथक श्रम
वस्त्रों में धुलते, झाड़ू लगाते, चूल्हे पर जलते
हमने देखा प्रतिदिन तुम्हे माता में ढलते
बिन मां की बेटी, कैसे होती गृहस्थी कुशल
कौतूहल में बना दिया जब एक दिन भोजन
भर आईं तुम्हारे आंखे, स्नेह बरसाया अपार
वर्षों बाद तुमने खाया बना-बनाया आहार
बनाने को हमे नीति कुशल सुनाई कथाएं अनेक
सिंहासनबत्तीशी, पंचतंत्र, रामायण, हितोपदेश
जीविकोपार्जन के करते रहे नित नए प्रयास
नही हुए सफल किसी में, टूटने लगा विश्वास
जाना एक दिन हुआ तुम्हे गंभीर यकृतशोथ
मैं था छोटा लेकिन बहन को होने लगा था बोध
मधुशाला में आश्रय पाया, छोड़ दिया विवेक
मुक्ति की आकांक्षा में करने लगे अतिरेक
यूं ही व्याकुल चौदह वर्षों का बीता वनवास
बच्चों का मुख देख-देख रहने लगे उदास
रोज मांगते क्षमा हमसे करके हुए परिरंभन
हुआ मैं असहाय अब मृत्यु का ही आलंबन
सुन कर व्यथा दारुन हम करते रहे विलाप
छोड़ कर हमें अकेला, नही जा सकते आप
बांधा ढाढस, रखना साहस, मृत्यु निकट आती है
समय नही अब शेष तुम्हारी माता मुझे बुलाती है
हाथ जोड़ कर, करता हूँ तुमसे यही विनती
नही कर पाया तुम्हारा विवाह, प्यारी पुत्री
कर देना विस्मृत यह अपराध हमारा
रहा आजीवन दुर्भाग्यशाली पिता तुम्हारा
फिर देखा मेरी ओर, आंखों में शून्यता गहरी
कुछ कहना रह गया बाकी, हुआ विदा वह प्रहरी
हम रह गए निःशब्द, प्राण जड़वत, निष्चेष्ट देह
अस्तंगत हुए तुम, चले लूटाकर हम पर सारा स्नेह
हम नही जानते आज भी क्या है माता का होना
क्षतिपूर्ति नही कोई भी जब पड़े पिता को खोना
करते स्मरण तुम्हे, 'सजल' नेत्रों से काव्यांजलि
हे पिता, करो स्वीकार, हमारी यही श्रधांजलि
अनावृत देह, गंभीर मुख, निर्लिप्त, निर्विकार
हम ताकते अपलक, समझने में असमर्थ
नही कोई आभास, हुआ यह क्या अनर्थ
माता का जब हुआ निधन,
विवाह का था नवम वर्ष
बच्चे दो, जिन्हें पालने का नही कोई अनुभव
घर बैठे भोजन पकाना तुम्हारे लिए असंभव
फिर भी तुमने ठुकरा दिया प्रस्तावित पुनर्विवाह
हमारी विमाता लाना तुम्हे कभी स्वीकार न हुआ
शुरू हुआ जीवन के सुख-दुःख का अंतहीन क्रम
गढ़ने को हमारा जीवन किये तुमने अनथक श्रम
वस्त्रों में धुलते, झाड़ू लगाते, चूल्हे पर जलते
हमने देखा प्रतिदिन तुम्हे माता में ढलते
बिन मां की बेटी, कैसे होती गृहस्थी कुशल
कौतूहल में बना दिया जब एक दिन भोजन
भर आईं तुम्हारे आंखे, स्नेह बरसाया अपार
वर्षों बाद तुमने खाया बना-बनाया आहार
बनाने को हमे नीति कुशल सुनाई कथाएं अनेक
सिंहासनबत्तीशी, पंचतंत्र, रामायण, हितोपदेश
जीविकोपार्जन के करते रहे नित नए प्रयास
नही हुए सफल किसी में, टूटने लगा विश्वास
जाना एक दिन हुआ तुम्हे गंभीर यकृतशोथ
मैं था छोटा लेकिन बहन को होने लगा था बोध
मधुशाला में आश्रय पाया, छोड़ दिया विवेक
मुक्ति की आकांक्षा में करने लगे अतिरेक
यूं ही व्याकुल चौदह वर्षों का बीता वनवास
बच्चों का मुख देख-देख रहने लगे उदास
रोज मांगते क्षमा हमसे करके हुए परिरंभन
हुआ मैं असहाय अब मृत्यु का ही आलंबन
सुन कर व्यथा दारुन हम करते रहे विलाप
छोड़ कर हमें अकेला, नही जा सकते आप
बांधा ढाढस, रखना साहस, मृत्यु निकट आती है
समय नही अब शेष तुम्हारी माता मुझे बुलाती है
हाथ जोड़ कर, करता हूँ तुमसे यही विनती
नही कर पाया तुम्हारा विवाह, प्यारी पुत्री
कर देना विस्मृत यह अपराध हमारा
रहा आजीवन दुर्भाग्यशाली पिता तुम्हारा
फिर देखा मेरी ओर, आंखों में शून्यता गहरी
कुछ कहना रह गया बाकी, हुआ विदा वह प्रहरी
हम रह गए निःशब्द, प्राण जड़वत, निष्चेष्ट देह
अस्तंगत हुए तुम, चले लूटाकर हम पर सारा स्नेह
हम नही जानते आज भी क्या है माता का होना
क्षतिपूर्ति नही कोई भी जब पड़े पिता को खोना
करते स्मरण तुम्हे, 'सजल' नेत्रों से काव्यांजलि
हे पिता, करो स्वीकार, हमारी यही श्रधांजलि
मार्मिक
ReplyDeleteबहुत धन्यवाद भैया🙏
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