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अन्य से अनन्या (प्रभा खेतान)

अन्य से अनन्या' हिंदी की सुपरिचित समकालीन लेखिका प्रभा खेतान की आत्मकथा है। भोगे हुए यथार्थ के जीवंत दस्तावेज के रूप में दर्ज यह उपन्यास पाठकों के मध्य जितना प्रचलित है, उतना ही विवादित भी है । प्रभा खेतान ने अपनी आत्मकथा के माध्यम से अपने जीवन के कष्टमय क्षणों को पूरी संवेदना के साथ प्रस्तुत किया है। लेखिका ने अपने आत्मसंघर्ष और समाज तथा परिवार के साथ अपनी कठिन परिस्थितियों के भीतर लड़कर राह तलाशने की वेदना भरी यात्रा को प्रकट करने का साहसिक कार्य किया है। स्त्री के जीवन को मर्यादा की सामाजिक तराजू से तोलने वाले मापदंडो को तोड़कर, यह रचना अपने समय से आगे निकल कर नारी मुक्ति की नई परिभाषा को गढ़ने का प्रयास है। 'अन्य से अनन्या' का सबसे विशिष्ट पक्ष है लेखिका का प्रेमप्रसंग जिसमें उन्होंने अपने हृदय को परत दर परत खोल कर प्रेम के मूल्य को सामाजिक रूढ़ि को तोड़ते हुए स्थापित करने का प्रयास किया है। वह एक विवाहित तथा अपने से अठारह वर्ष बड़े व्यक्ति से प्रेम करती है । यह प्रेम जहां एक ओर उनके जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि है, वहीं दूसरी ओर उनके अस्तित्व पर सबसे बड़ा प्रश्नचिह्न भी। अपने प्रेम की वजह से वह कदम-कदम पर समाज द्वारा घेरी जाती है और अनेकों उलाहनों की पीड़ा सहते हुए भी अपनी अस्मिता की रक्षा करती है। वह आत्मनिर्भर है और तमाम यातनाओं को सहते हुए भी झुकने के लिए तैयार नही है। वह सामाजिक मान्यताओं के बने-बनाये ढांचे के भीतर बंधे रहकर, अपनी जीवन की अभिलाषाओं को कुचल कर जीने से इनकार करती है । 

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हम रामचरितमानस को धार्मिक दृष्टि से देखने के पक्षपाती हैं इसीलिए इस महाकाव्य के उन असाधारण प्रसंगों का मूल्यांकन नही किया जाता है जो अपनी अंतर्वस्तु में लौकिक और मार्मिकता से संपृक्त हैं। जैसे, तुलसीदास जी ने वाल्मीकि रामायण से आगे बढ़कर मानस में जनक वाटिका के राम-सीता मिलन के प्रसंग का सृजन कर स्वयंवर को शक्तिपरीक्षण के स्थान पर प्रेम-विवाह के मंच के रूप में स्थापित किया। अतः मानस को केवल भक्तिकाव्य के रूप में देखे जाने से उसके बहुत सारे पक्ष गौण हो जाते हैं जो मानवीय दृष्टि से हमारे लिए प्रतिमान हैं, जिसमे एकनिष्ठ प्रेम के आदर्श हैं, अपने जीवनसाथी से बिछुड़ने की पीड़ा है, उसके लिए किसी भी सीमा को लांघ जाने का साहस है। तुलसीदासजी ने मानस रचना की प्रक्रिया में अपने काल का अतिक्रमण कर ऐसी प्रगतिशील समन्वयवादी दृष्टि को साधा जिसके कारण किसी भी विचारधारा के आलोचक उन्हें ख़ारिज करने का साहस नही कर सके। आज के मानस प्रसंग की कड़ी में लंकाकाण्ड के पृष्ठों से उद्घाटित सीता-त्रिजटा संवाद का यह अंश भी ऐसा ही अद्भुत कोटि का प्रसंग है जिसे पहली बार पढ़कर आप भी आश्चर्यचकित हो उठेंगे।  लंकाकाण

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