Skip to main content

अल्मा कबूतरी (मैत्रेयी पुष्पा)

अल्मा कबूतरी' मैत्रयी पुष्पा द्वारा रचित जनजातीय समाज की समस्याओं पर आधारित एक सशक्त उपन्यास है। उपन्यास बुंदेलखंड के आस-पास की कबूतरा जनजाति को आधार बना कर लिखी गई है। मैत्रयी पुष्पा ने उपन्यास में जनजातियों की बद्तर जिंदगी और सभ्य समाज द्वारा उनके प्रति संवेदनहीन दृष्टिकोण का अत्यंत यथार्थ चित्रण किया है। अपनी यथास्थिति से बाहर निकलने की छटपटाहट में जिंदगी बशर करने वाले ये जनजातीय समुदाय निकृष्ट जीवन जीने के लिए अभिशप्त है। सभ्य समाज, जिनके द्वारा इन्हें हेय दृष्टि से देखा जाता है, इनकी स्त्रियों को अपनी वासना का शिकार बनाने के लिए हमेशा उत्सुक रहता है। समाज से कट कर जंगलों और बीहड़ों में जिंदगी गुजारने वाले ये समुदाय तथाकथित सभ्य समाज द्वारा स्वघोषित चोर और अपराधी हैं। उपन्यास की केंद्रीय पात्र 'अल्मा' है जो अपने पिता के द्वारा ऋण न चुकाए जाने के एवज में सूरजभान के यहां गिरवी रख दी जाती है। यहां अल्मा का न सिर्फ अनेक प्रकार से शारिरिक और मानसिक शोषण होता है, बल्कि उसे देह व्यापार में भी शामिल कर दिया जाता । अनेक प्रकार की यातनाओं से गुजरती हुई अल्मा जब मंत्री श्रीराम शास्त्री के पास मदद की गुहार लगाने पहुंचती है, तब यहां भी उसकी अस्मिता की धज्जियां उड़ाई जाती है। अल्मा अपनी आबरू को इतनी बार लूटते देखती है की उसके अंदर की लज्जा तक मर जाती है । उपन्यास में नारी संघर्ष, जनजातीय समाज की समस्याएं एवं राजनीति की विकृतियों का काफी गहराई से समावेश किया गया है।

Comments

Popular posts from this blog

मानस प्रसंग (4)

हम रामचरितमानस को धार्मिक दृष्टि से देखने के पक्षपाती हैं इसीलिए इस महाकाव्य के उन असाधारण प्रसंगों का मूल्यांकन नही किया जाता है जो अपनी अंतर्वस्तु में लौकिक और मार्मिकता से संपृक्त हैं। जैसे, तुलसीदास जी ने वाल्मीकि रामायण से आगे बढ़कर मानस में जनक वाटिका के राम-सीता मिलन के प्रसंग का सृजन कर स्वयंवर को शक्तिपरीक्षण के स्थान पर प्रेम-विवाह के मंच के रूप में स्थापित किया। अतः मानस को केवल भक्तिकाव्य के रूप में देखे जाने से उसके बहुत सारे पक्ष गौण हो जाते हैं जो मानवीय दृष्टि से हमारे लिए प्रतिमान हैं, जिसमे एकनिष्ठ प्रेम के आदर्श हैं, अपने जीवनसाथी से बिछुड़ने की पीड़ा है, उसके लिए किसी भी सीमा को लांघ जाने का साहस है। तुलसीदासजी ने मानस रचना की प्रक्रिया में अपने काल का अतिक्रमण कर ऐसी प्रगतिशील समन्वयवादी दृष्टि को साधा जिसके कारण किसी भी विचारधारा के आलोचक उन्हें ख़ारिज करने का साहस नही कर सके। आज के मानस प्रसंग की कड़ी में लंकाकाण्ड के पृष्ठों से उद्घाटित सीता-त्रिजटा संवाद का यह अंश भी ऐसा ही अद्भुत कोटि का प्रसंग है जिसे पहली बार पढ़कर आप भी आश्चर्यचकित हो उठेंगे।  लंकाकाण

पचपन खंभे लाल दीवारें (उषा प्रियंवदा)

‘पचपन खंभे लाल दीवारें', हिंदी साहित्य में नवलेखन के दौर की बहुचर्चित लेखिका उषा प्रियम्वदा का प्रथम उपन्यास है। उपन्यास की मुख्य चरित्र 'सुषमा' एक मध्यवर्गीय परिवार की अविवाहित युवती है। वह अपने घर की नाजुक आर्थिक परिस्थितियों की वजह से घर से दूर हॉस्टल में रहते हुए कॉलेज की नौकरी कर रही है। सुषमा अपने परिवार की जिम्मेदारियों का निर्वहन करते हुए, यौवनावस्था का अतिक्रमण कर कब तैंतीस वर्ष की हो जाती है उसे स्वयं भी पता नहीं चल पाता है। सुषमा अकेली है, वह अपना अकेलापन बांटने के लिए एक जीवन साथी के साहचर्य की आकांक्षा को मन ही मन साकार करने के स्वप्न देखती है। लेकिन अपने दायित्वों के बोझ तले वह इतना दबी है कि विवाह के बारे में सोचने में भी वह एक तरह का अपराधबोध महसूस करती है।  सुषमा अपने से कम उम्र के नील से प्रेम करती है। नील उसे पसंद करता है, उसकी देखभाल करता है और हर दृष्टि से उसके जीवन मे व्याप्त सूनेपन को दूर करने में उसका हमसफर बन सकता है लेकिन, सुषमा सामाजिक मर्यादाओं के उल्लंघन और भाई-बहन के भविष्य की चिंता के दुष्चक्र में इतने गहरे धंस चुकी है कि उसे जीवन मे अपने नि

लौट चलो

सुनो अवनी की उन  कातर चीत्कारों को, जो मांग रही हमसे क्षमा अपने नैसर्गिक प्रेम को बांटने के अपराध में। सुनो विलाप करती हुई उस धरती का लोमहर्षक रुदन, जो दे रही हमे चेतावनी। मनुष्य! रोक दो अपनी क्षुधातुर एषणा के रथ को अन्यथा सूख जाएंगे सरिता के स्त्रोत और बुझ जाएगी प्यास  सदा के लिए। मिट जाएगा हवा और  जहर का भेद। फूल से कुम्हला जाएंगे  बच्चों के फेफड़ें। जीवन गर्भ में आते ही  दम तोड़ देगा। मर जाएंगे पर्वत,  सड़ जाएगा समुद्र और मिटा देगा दावानल  जंगलों को सदा के लिए। मढ़ा जाएगा असंख्य जीवहत्या  का पाप तुम्हारे सर और  मुक्त नही होगा मनुष्य इस  महापातक से कल्पों तक। पिघला दो सभी गाड़ियों का लोहा और भर दो ज्वालामुखी की दरारों में। इकट्ठा करके प्लास्टिक के पहाड़ चुनवा दो उसे पत्थर की दीवार से। झोंक दो वे सारे उपकरण, जो तुम्हें देते हैं आनंद  सुलगती हुई धरती की कीमत पर। बंद कर दो फैक्ट्रीयां और उनमें बनने वाले रसायन, इस हलाहल को नदियां