एक ज़मीन अपनी स्त्री विमर्श साहित्य में चित्रा मुद्गल द्वारा लिखा गया एक नये तेवर का उपन्यास है। कथावस्तु, बड़े शहरों की चकाचौंध करती दुनिया में अपने वजूद को तलाशती एक मध्यवर्गीय युवती 'अंकिता' के बारे में है । अंकिता विज्ञापन के क्षेत्र में कार्य करने वाली, एक साधारण परिवार की लड़की है जो घर की आर्थिक बदहाली दूर करने और स्थायी नौकरी पाने के लिए संघर्ष कर रही है। अंकिता को अपनी योग्यता के बावजूद, बार-बार उसके स्त्री मात्र होने के कारण उससे समझौता की अपेक्षा की जाती है।
अंकिता भावुक है किन्तु वह कमजोर नही है। वह महानगरीय बाजारवाद की बुराइयों से खुद को दूर रख, अपने पैरों पर खड़ी होना चाहती है। वह समझौते के लिए तैयार नही होती है, जिसके कारण उसे तरह-तरह की मुश्किलें झेलनी पड़ती है।
उपन्यास में शहरों के उपभोक्तावादी चरित्र, विज्ञापनों के मायावी संसार और स्त्री के प्रति असमान व्यवहार को प्रस्तुत कर बड़े शहरों के खोखलेपन को प्रभावी ढंग से उजागर किया गया है। उपन्यास का एक दूसरा पक्ष नारी-पुरूष संबंधों में तनाव का रेखांकन है। लेखिका, अंकिता के माध्यम से नारी मुक्ति के नए आयामों को कथानक में स्थान देती हैं, जिसमें महिलाएँ स्वतन्त्र और आत्मनिर्भर हैं तथा चुनाव करने में सक्षम हैं।
अंकिता भावुक है किन्तु वह कमजोर नही है। वह महानगरीय बाजारवाद की बुराइयों से खुद को दूर रख, अपने पैरों पर खड़ी होना चाहती है। वह समझौते के लिए तैयार नही होती है, जिसके कारण उसे तरह-तरह की मुश्किलें झेलनी पड़ती है।
उपन्यास में शहरों के उपभोक्तावादी चरित्र, विज्ञापनों के मायावी संसार और स्त्री के प्रति असमान व्यवहार को प्रस्तुत कर बड़े शहरों के खोखलेपन को प्रभावी ढंग से उजागर किया गया है। उपन्यास का एक दूसरा पक्ष नारी-पुरूष संबंधों में तनाव का रेखांकन है। लेखिका, अंकिता के माध्यम से नारी मुक्ति के नए आयामों को कथानक में स्थान देती हैं, जिसमें महिलाएँ स्वतन्त्र और आत्मनिर्भर हैं तथा चुनाव करने में सक्षम हैं।
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