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Showing posts from January, 2020

भस्मासुर

अपनी ही दुनिया में पैठे हुए मैट्रो में बैठे हुए कानों को हेडफ़ोन से झाँपकर बगल वाले से दूरियाँ नापकर हम सुन रहे संगीत उस असफलता का जिसमें घिर गया है मनुष्य एक श्रेष्ठताबोध से या  किसी कुंठाजनित अवरोध से। फेसबुक खोल कर तेजी से स्क्रॉल कर देख रहें उस खबर पर प्रतिक्रिया क्या है। हमने और किया क्या है? आशंकाओं से डर-डर कर दृष्टि जाती प्रत्येक खबर पर। कोई घबराए, डर जाए,  रोते हुए अपने घर जाए या मर जाए, हम तठस्थ। काम में व्यस्त अपनी उपलब्धियों पर खुश ये मनहूस  हमारी भस्मासुरी अहंकारी सोच  जला कर राख कर देती है उस एक संवेदना को  जो दूसरों में भी जिजीविषा से भरा अपने जैसा ही एक मनुष्य देख सके।

मानस प्रसंग (2)

निर्वासित राजकुमार दुर्गम वनों में अपनी स्त्री की तलाश में दर-दर ठोकरें खाते हुए अनुज सहित भटक रहे हैं। तभी मरणासन्न जटायु उन्हें सीता की सूचना देते हैं कि किस प्रकार लंका का अधिपति उन्हें बलपूर्वक हरण कर ले जा रहा था। निश्चित ही यह सूचना राम के लिये वज्रपात के समान रही होगी। किंतु राम वह मनुष्य है जिनकी प्रतिष्ठा पूरी मानवजाति के लिये एक प्रतिमान गढ़ने वाली है। राम यह जानते हैं कि उनकी एक-एक प्रतिक्रिया सभी निर्बल, असहाय लोगों के लिए जीवन की कठिनाइयों में मार्ग प्रशस्त करने वाले उदाहरण बन कर दुहराए जाएंगे। तब प्राण त्यागते हुए जटायु के सामने मर्यादापुरुषोत्तम श्रीराम एक संकल्प लेते हैं:  सीता हरन तात जनि  कहहु पिता सन जाइ ।  जौं मैं राम त कुल सहित  कहिहि दसानन आइ ।⁠।⁠ 【हे तात! सीताहरणकी बात आप जाकर पिताजीसे न कहियेगा। यदि मैं राम हूँ तो दशमुख रावण कुटुम्बसहित वहाँ आकर स्वयं ही कहेगा।】 ध्यान देने योग्य बात है कि जिस समय राम ने यह संकल्प लिया उस समय न तो उनके सामने वानरों की कोई सेना थी और न ही महापराक्रमी हनुमान जैसा कोई सहायक; था तो केवल यह आत्मविश्वास कि यदि मैं सच में &qu