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Showing posts from February, 2020

कालचक्र

जलधि समीर आकाश अनल है कौन भला समय से प्रबल रेत की तरह फिसलता जीवन शिशु, किशोर, युवा, मरणासन्न कभी दुर्लघ्य तो कभी सुखमय है समय भी कितना रहस्यमय है धन, यश, प्रेम, और सम्मान सर्वस्व पाने का कर अनुमान गिरते, संभलते, ठोकर खाते जब हम इस संसार मे आते कितना कुछ भर लेने की चाह में भटक जाते मृगतृष्णा की राह में कालचक्र की गति न टूटी रह जाती अभिलाषाएं छुटी जो चाहा उसको पा न सके जो पाया उसे अपना न सके भुला देने को उसे जिसे कभी खोया था क्षमा मांगने उससे जो हमारी वजह से रोया था समय नही देता हमे एक कतरा उधार का पीना ही होता है अन्ततः विष स्वीकार का मनुष्य अपने कंधों पर कितने बोझ लिए जीता है वक्त भी नही शायद ~हर जख्मों को सीता है~ सुयश मिश्रा (सजल)

मानस प्रसंग (3)

महाकाल की बरात  जिस वर को पाने के लिए भवानी कठोर तपस्या कर रहीं हैं वह स्वयं समाधि में बैठे हुए हैं। एक दामाद के रूप में त्रिपुरारी की कल्पना करके उमा का परिवार, विशेषकर माता, अत्यंत दुःखी है। क्योंकि नारदजी कह गए कि  योगी, जटाधारी, निष्कामहृदय, नंगा और अमङ्गल वेषवाला, ऐसा पति इसको मिलेगा। इसके हाथ में ऐसी ही रेखा पड़ी है। और नारद के वचन कभी मिथ्या नही होते।  संसार में जिनका कोई नही उन अनाथों के नाथ तो स्वयं शिव है लेकिन शिव का कौन है? वैरागी शिव को विवाह के लिए कौन मनाएगा? समाज में ऐसे एकाकी लोगों का एक बेस्ट फ्रेंड होता है जो इन सब मामलों में माता-पिता या परिवार की भूमिका निभाता है। हर के विवाह में यह रोल स्वयं हरि निभा रहे हैं। उन्होंने शिव को समाधि से जगाया और उनसे यह वरदान लिया कि शिव उमा से विवाह जरूर करेंगें। ध्यान देने योग्य बात है कि ईश्वर किसी की साधना से प्रसन्न होकर वर देते हैं लेकिन महाकाल के सामने प्रकट होकर नारायण स्वयं वर मांग रहे है हैं। ऐसे औढरदानी है शिव, विवाह के लिए तैयार हो गए। अब नारायण अपने प्रिय मित्र के विवाह में पूरा आनंद लेने का मन बना चुकें हैं । महाकाल