आइये आज एक यायावर की आँखों से प्रकृति को देखते हैं। अज्ञेय अपनी प्रयोगशीलता के लिये सुविख्यात हैं। वे जितना महत्व भाषा को देते हैं उतना ही महत्व शब्दों की मितव्ययिता को भी देते हैं। उनका मानना है कि रचना में एक भी शब्द व्यर्थ में शामिल न हो। कम शब्दों में भी बड़ा अर्थ भरने की विशेषता उन्हें आधुनिक कवि और उससे भी ज्यादा सजग कवि के रूप में स्थापित करती है। उनकी इसी विशेषता को ध्यान में रखते हुए हम उनकी कविता 'दुर्वाचल' का विश्लेषण करेंगें। हमारा यात्री (अज्ञेय) एक ऐसे पर्वतीय स्थल पर है जिस गिरि का पार्श्व नम्र है, कोमल है। कोमलता का पर्वतों के साथ संयोग अज्ञेय जैसा सजग यात्री ही कर सकता है। यहाँ चीड़ के वृक्षों की ऊपर जाती पंक्ति ऐसी लग रही है मानो उमंगें डगर चढ़ रही हो। नीचे की ओर बिछी नदी (बहती नही) अर्थात एक ठहराव है और यह ठहराव गतिहीनता की सूचक नही बल्कि एक शांति का प्रतीक है। और फिर अद्भुत बिम्ब का प्रयोग - नदी ऐसी लग रही है मानो एक 'दर्द की रेखा' खिंची हो, जैसे दर्द ने मूर्त रूप धारण कर लिया हो। इसे कहते हैं थोड़े से शब्दों में बड़ा अर्थ भरना।
धर्म और साहित्य, थोड़ा दर्शन और थोड़ा मनोविज्ञान