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Showing posts from July, 2019

कर्मभूमि (मुंशी प्रेमचंद)

प्रेमचंद भारतीय जनमानस के सूत्रों को व्याख्यायित करने वाले लेखक है। 'कर्मभूमि' उनके द्वारा लिखा गया एक राजनीतिक उपन्यास है जिसका प्रकाशन वर्ष 1932 में हुआ। इस दौर में देश महात्मा गांधी के नेतृत्व में स्वतंत्रता की लड़ाई लड़ रहा था। कथानक बनारस और हरिद्वार के इर्द-गिर्द के इलाकों के परिवेश में बुना गया है। कर्मभूमी के विभिन्न पात्र अलग-अलग वर्गों एवं मानसिकता का प्रतिनिधित्व करते हैं। अमरकांत और उसकी पत्नी सुखदा देश और समाज के प्रति संवेदनशील है। अमरकांत एक दृढ़ समाज सेवक है जो गांधीवादी रास्ते पर चल कर अपने सामाजिक दायित्व को पूरा करने का प्रयास करता है। 'लाला समरकान्त' कुटिल साहूकार है और पैसों के पीछे जान छिड़कते हैं। 'गूदड़' निम्न जाति का किसान है जो सामन्तवादी शोषण का शिकार होता है। इस प्रकार विविधता से भरे अनेक पात्र इस उपन्यास में जगह-जगह आकर अपनी महत्वपूर्ण भूमिकाएं निभाते है। इसके अलावा अमरकांत और मुस्लिम लड़की सकीना में प्लेटोनिक प्रेम का भी प्रसंग है लेकिन प्रेमचंद ने उसे ज्यादा बढ़ने नहीं दिया है। प्रेमचंद ने इस उपन्यास में कई तरह की युगीन समस

कायाकल्प (मुंशी प्रेमचंद)

कायाकल्प' मुंशी प्रेमचंद का एक प्रसिद्ध उपन्यास है। इस उपन्यास में प्रेमचंद ने मुख्य रूप से साम्प्रदायिकता की समस्या को उठाया है। उपन्यास में दोनों धर्मों के कुछ अवसरवादी तत्वों के द्वारा दंगो की आड़ में अपने स्वार्थ को साधने का यथार्थ चित्रण किया गया है। इस कहानी का मुख्य पात्र 'चक्रधर' है जिसमें समाजसेवा की प्रबल भावना है। चक्रधर जमींदार की पुत्री मनोरमा से प्रेम करता है लेकिन उनका विवाह नही हो पता है। बाद में वह सारी परम्पराओं को ठुकराकर एक मुस्लिम परिवार की विधवा से शादी करता है। उपन्यास के कथानक के समानांतर एक पुनर्जन्म की कहानी भी चल रही है। जगदीशपुर की विलासप्रिय रानी देवप्रिया को जब अपने पूर्वजन्म का पति मिल जाता है तब वह अपनी जागीर विशाल सिंह को सौंप कर चली जाती है। प्रेमचंद ने कायाकल्प में अलौकिकता का सृजन कर उसे सामयिक संदर्भों से जोड़ने का प्रयास किया है। उपन्यास में जागीरदारों द्वारा चमारों के शोषण, कैदियों के साथ अमानवीय व्यवहार और अंग्रेजी हुकूमत के हिंसक स्वरूप का वर्णन किया गया है। मूल संवेदना में चक्रधर का जीवन संघर्ष है जो पाठकों को प्रभावित

अन्य से अनन्या (प्रभा खेतान)

अन्य से अनन्या' हिंदी की सुपरिचित समकालीन लेखिका प्रभा खेतान की आत्मकथा है। भोगे हुए यथार्थ के जीवंत दस्तावेज के रूप में दर्ज यह उपन्यास पाठकों के मध्य जितना प्रचलित है, उतना ही विवादित भी है । प्रभा खेतान ने अपनी आत्मकथा के माध्यम से अपने जीवन के कष्टमय क्षणों को पूरी संवेदना के साथ प्रस्तुत किया है। लेखिका ने अपने आत्मसंघर्ष और समाज तथा परिवार के साथ अपनी कठिन परिस्थितियों के भीतर लड़कर राह तलाशने की वेदना भरी यात्रा को प्रकट करने का साहसिक कार्य किया है। स्त्री के जीवन को मर्यादा की सामाजिक तराजू से तोलने वाले मापदंडो को तोड़कर, यह रचना अपने समय से आगे निकल कर नारी मुक्ति की नई परिभाषा को गढ़ने का प्रयास है। 'अन्य से अनन्या' का सबसे विशिष्ट पक्ष है लेखिका का प्रेमप्रसंग जिसमें उन्होंने अपने हृदय को परत दर परत खोल कर प्रेम के मूल्य को सामाजिक रूढ़ि को तोड़ते हुए स्थापित करने का प्रयास किया है। वह एक विवाहित तथा अपने से अठारह वर्ष बड़े व्यक्ति से प्रेम करती है । यह प्रेम जहां एक ओर उनके जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि है, वहीं दूसरी ओर उनके अस्तित्व पर सबसे बड़ा प्रश्नचिह्न

इदन्नम (मैत्रेयी पुष्पा)

इदन्नमम' ग्रामीण परिवेश की पृष्ठभूमि पर रची गई एक सशक्त रचना है जिसमे मैत्रयी पुष्पा ने आंचलिकता का समावेश कर अपनी सृजनशीलता का अत्यधिक सधा हुआ प्रयोग किया है । ‌इदन्नमम में लेखिका ने न केवल गांव की सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक समस्याओं को उठाया है, बल्कि स्त्री चेतना की मौलिक अभिव्यक्ति करने का प्रयास भी किया है । उपन्यास बुंदेलखंड के गाँवों में केंद्रित है जहां की जटिल भौगोलिक परिस्थितियों में खेतिहरों की दशा बहुत ही दयनीय है। साथ ही अवैध खनन माफियाओं के शोषण ने वहां के लोगों का जीवन और भी दुष्कर बना दिया है। ‌इदन्नमम तीन पीढ़ियों की औरतों के द्वंद को सूक्ष्मता के साथ प्रकट करता है । बऊ, प्रेम और मन्दा क्रमशः दादी, बहु और पोती की भूमिका में में उपस्थित संघर्षरत स्त्रियां हैं जो विभिन्न परिस्थितियों में अलग-अलग संकटो से गुजरते हुए नारी जीवन की चुनौतियों को गंभीरता के साथ प्रस्तुत करतीं हैं। कई सहायक पात्र हैं जो कहानी के समानांतर अत्यंत सशक्त वातावरण तैयार करते हैं। मन्दा उपन्यास की प्रमुख पात्र है, उसने विषमताओं से भरा जीवन देखा है। माता-पिता के स्नेह के अभाव और अनु

अल्मा कबूतरी (मैत्रेयी पुष्पा)

अल्मा कबूतरी' मैत्रयी पुष्पा द्वारा रचित जनजातीय समाज की समस्याओं पर आधारित एक सशक्त उपन्यास है। उपन्यास बुंदेलखंड के आस-पास की कबूतरा जनजाति को आधार बना कर लिखी गई है। मैत्रयी पुष्पा ने उपन्यास में जनजातियों की बद्तर जिंदगी और सभ्य समाज द्वारा उनके प्रति संवेदनहीन दृष्टिकोण का अत्यंत यथार्थ चित्रण किया है। अपनी यथास्थिति से बाहर निकलने की छटपटाहट में जिंदगी बशर करने वाले ये जनजातीय समुदाय निकृष्ट जीवन जीने के लिए अभिशप्त है। सभ्य समाज, जिनके द्वारा इन्हें हेय दृष्टि से देखा जाता है, इनकी स्त्रियों को अपनी वासना का शिकार बनाने के लिए हमेशा उत्सुक रहता है। समाज से कट कर जंगलों और बीहड़ों में जिंदगी गुजारने वाले ये समुदाय तथाकथित सभ्य समाज द्वारा स्वघोषित चोर और अपराधी हैं। उपन्यास की केंद्रीय पात्र 'अल्मा' है जो अपने पिता के द्वारा ऋण न चुकाए जाने के एवज में सूरजभान के यहां गिरवी रख दी जाती है। यहां अल्मा का न सिर्फ अनेक प्रकार से शारिरिक और मानसिक शोषण होता है, बल्कि उसे देह व्यापार में भी शामिल कर दिया जाता । अनेक प्रकार की यातनाओं से गुजरती हुई अल्मा जब मंत्री

एक ज़मीन अपनी (चित्रा मुद्गल)

एक ज़मीन अपनी स्त्री विमर्श साहित्य में चित्रा मुद्गल द्वारा लिखा गया एक नये तेवर का उपन्यास है। कथावस्तु, बड़े शहरों की चकाचौंध करती दुनिया में अपने वजूद को तलाशती एक मध्यवर्गीय युवती 'अंकिता' के बारे में है । अंकिता विज्ञापन के क्षेत्र में कार्य करने वाली, एक साधारण परिवार की लड़की है जो घर की आर्थिक बदहाली दूर करने और स्थायी नौकरी पाने के लिए संघर्ष कर रही है। अंकिता को अपनी योग्यता के बावजूद, बार-बार उसके स्त्री मात्र होने के कारण उससे समझौता की अपेक्षा की जाती है। अंकिता भावुक है किन्तु वह कमजोर नही है। वह महानगरीय बाजारवाद की बुराइयों से खुद को दूर रख, अपने पैरों पर खड़ी होना चाहती है। वह समझौते के लिए तैयार नही होती है, जिसके कारण उसे तरह-तरह की मुश्किलें झेलनी पड़ती है। उपन्यास में शहरों के उपभोक्तावादी चरित्र, विज्ञापनों के मायावी संसार और स्त्री के प्रति असमान व्यवहार को प्रस्तुत कर बड़े शहरों के खोखलेपन को प्रभावी ढंग से उजागर किया गया है। उपन्यास का एक दूसरा पक्ष नारी-पुरूष संबंधों में तनाव का रेखांकन है। लेखिका, अंकिता के माध्यम से नारी मुक्ति के नए आयामो

गुड़िया भीतर गुड़िया (मैत्रेयी पुष्पा)

मैत्रेयी पुष्पा की 'गुड़िया भीतर गुड़िया' आत्मकथात्मक उपन्यासों को लिखने के समकालीन प्रयासों में एक बेबाक और साहसिक प्रविष्टि है। प्रस्तुत उपन्यास में लेखिका ने अपने जीवन के निजी क्षणों की गांठो को खोलकर, अपने भोगे हुए सच को शब्दों में उतारने का दृढ़ प्रयास किया है। गुड़िया भीतर गुड़िया की मैत्रेयी अपने स्त्री होने के की सभी जिम्मेदारियों को पूरा करते हुए बार-बार ठगी जाती है। कभी बेटियों को जन्म देने की उलाहने सहती है तो कभी पति की संदेहास्पद वचनों से आहत होती है। नारी को केवल उपभोग की वस्तु समझने वाले समाज की वास्तविकता उसके मन को रिक्तता से भर देती हैं। वह पुरुषवादी अहंकार और स्त्री की परंपरागत दासता के स्थापित प्रतिमान को चुनौती देती है, अपने निज के समर्पण से इनकार करती है और नारी के प्रति गढ़े हुए रूढ़िगत धारणाओं पर प्रश्न उठाती है। उसने नारी के सामाजिक और नैतिक दायित्वों का निर्वहन करते हुए जीवन मे बहुत कुछ खोया है। अब वह अपने व्यक्तित्व पर किसी का नियंत्रण नहीं चाहती है। वह नारी की स्वतंत्रता को बांधने के लिए विवाह जैसी व्यवस्था को खोखला मानती है और बलात अपने व्यक

पचपन खंभे लाल दीवारें (उषा प्रियंवदा)

‘पचपन खंभे लाल दीवारें', हिंदी साहित्य में नवलेखन के दौर की बहुचर्चित लेखिका उषा प्रियम्वदा का प्रथम उपन्यास है। उपन्यास की मुख्य चरित्र 'सुषमा' एक मध्यवर्गीय परिवार की अविवाहित युवती है। वह अपने घर की नाजुक आर्थिक परिस्थितियों की वजह से घर से दूर हॉस्टल में रहते हुए कॉलेज की नौकरी कर रही है। सुषमा अपने परिवार की जिम्मेदारियों का निर्वहन करते हुए, यौवनावस्था का अतिक्रमण कर कब तैंतीस वर्ष की हो जाती है उसे स्वयं भी पता नहीं चल पाता है। सुषमा अकेली है, वह अपना अकेलापन बांटने के लिए एक जीवन साथी के साहचर्य की आकांक्षा को मन ही मन साकार करने के स्वप्न देखती है। लेकिन अपने दायित्वों के बोझ तले वह इतना दबी है कि विवाह के बारे में सोचने में भी वह एक तरह का अपराधबोध महसूस करती है।  सुषमा अपने से कम उम्र के नील से प्रेम करती है। नील उसे पसंद करता है, उसकी देखभाल करता है और हर दृष्टि से उसके जीवन मे व्याप्त सूनेपन को दूर करने में उसका हमसफर बन सकता है लेकिन, सुषमा सामाजिक मर्यादाओं के उल्लंघन और भाई-बहन के भविष्य की चिंता के दुष्चक्र में इतने गहरे धंस चुकी है कि उसे जीवन मे अपने नि

आपका बंटी (मन्नू भंडारी)

आपका बंटी' मन्नू भंडारी का सबसे लोकप्रिय उपन्यास है। इस उपन्यास में लेखिका ने दाम्पत्य जीवन में तलाक की त्रासदी और शिशु 'बंटी' के बाल मनोविज्ञान पर उसके प्रभाव का ऐसा वास्तविक चित्रण किया है जिसे पढ़कर पाठक स्तब्ध रह जाते हैं। पति-पत्नी में संबंध-विच्छेद और जीवन में नई संभावनाओं को तलाशने के प्रयास, आधुनिक भारतीय समाज में अब कोई नई घटना नही है। लेकिन जब तलाकशुदा मां-बाप के बीच एक अबोध संतान उपस्थित हो, तब यह घटना कितनी चुनौतीपूर्ण और संवेदनशील बन जाती है इसका जीवंत उदाहरण है यह उपन्यास। उपन्यास की मूल संवेदना बंटी की पीड़ा है जिसका बचपन न चाहते हुए भी माता-पिता के तनावपूर्ण रिश्तों की आँच से झुलस रहा है। वह अनिश्चितता से घिरे वातावरण में ऐसी यातनाओं से गुजरता है जिसका वह अधिकारी नही है। मन्नू भंडारी ने इस सामयिक यथार्थ का अत्यंत सूक्ष्मता के साथ अंकन कर बाल मनोविज्ञान की गहराई को नापने का अद्भुत प्रयास किया है। उन्होंने पति-पत्नी के रिश्तों में बिखराव और संबंध-हीनता की पड़ताल करते हुए, नए सम्बन्धों की मांग में छिपे अर्थबोध को बारीकी के साथ उजागर किया है। तलाक की

चाक (मैत्रेयी पुष्पा)

'चाक' मैत्रयी पुष्पा द्वारा रचित अद्वितीय उपन्यास है जो कि ग्रामीण पृष्ठभूमि में अत्यंत सशक्त रूप में स्त्री अस्मिता के स्तर को अभिव्यक्ति प्रदान करता है। 'चाक' की 'रेशम' विवाह संस्था के बाहर भी गर्भधारण का अधिकार चाहती है और 'सारंग'  पति , पुत्र , सास-ससुर से भरे-पूरे परिवार में होते हुए भी प्रेम करने का अधिकार चाहती है। ये औरतें उस जटिल ग्रामीण परिवेश में अपनी स्वतंत्रता और अधिकारों की पुरजोर वकालत करतीं है, जहां का समाज नारी-जाति की परंपरागत और रूढ़ धारणाओं पर टिका है। रेशम अपने जेठ के द्वारा मौत के घाट उतार दी जाती है, जैसा कि इस गांव में स्त्रियों के साथ होता आया था, लेकिन सारंग इस अपराध का मुखर विरोध करती है और रेशम को न्याय दिलवाने के लिए ऐड़ी-चोटी का जोर लगा देती है। सारंग इस उपन्यास की मुख्य पात्र है जो गांव में रहकर भी आधुनिक स्त्री की प्रतिनिधि है। वह पति के शुष्कता भरे स्वभाव से विरक्त होकर यदि अन्य पुरूष के साथ संबंध बनाती है तो उसे कोई पाप नही समझती है। सारंग में यदि स्त्रियोचित कोमलता है तो उसमें निडरता भी है। वह एक ओर न्योछावर होकर प्रे

छिन्नमस्ता (प्रभा खेतान)

छिन्नमस्ता, भारतीय समाज में स्त्री की वैयक्तिकता के दमन को पूरी नग्नता के साथ उभारने वाला जीवंत दस्तावेज है। लेखिका प्रभा खेतान ने इस उपन्यास में मारवाड़ी समाज और केंद्रीय पात्र 'प्रिया' के जीवन को आधार बना कर, नारी जाति के कोमल पक्षों को निर्ममता के साथ कुचले जाने का यथार्थ चित्रण किया है। प्रिया अपने परिवार की अनचाही संतान है जो तिरस्कार और शुष्कता के वातावरण में बड़ी हुई है और अपने घर में ही बालात्कार जैसी भयानक त्रासदी झेल चुकी है। परिपक्व होने से पहले ही उसका व्यक्तित्व शून्यता से भर गया है। उसका विवाह दूसरी पत्नी के रूप में नरेंद्र से कर दी जाती है जो पितृसत्तात्मक मानसिकता का ही विद्रूप चेहरा है। नरेंद्र स्त्री को संपत्ति और भोग की वस्तु से ज्यादा कुछ नही समझता है। इस प्रकार प्रिया ससुराल में भी निरंतर प्रताड़ना का शिकार होती है। प्रिया समस्त यातनाओं को भोगते हुए भी अपने अस्तित्व को बिखरने से रोकना चाहती है। अपने स्व को बचाने के लिए तथा अपनी पहचान को गढ़ने के लिए वह संघर्ष करती है और सामना करती है उस रूढ़िगत मानसकिता का, जो औरत को मनुष्य तक मानने के लिए तैयार नही है। लेखि

कठगुलाब (मृदुला गर्ग)

कठगुलाब मृदुला गर्ग का स्त्री विषयक प्रसिद्ध उपन्यास है। लेखिका ने इस उपन्यास के माध्यम से नारी संघर्ष और नारी सामर्थ्य दोनों ही पक्षों का बखूबी चित्रण किया है। उपन्यास के केंद्र में अलग-अलग परिस्थितियों में पितृसत्तात्मक समाज के द्वारा प्रताड़ित चार महिलाएं हैं जिनका जीवन कठोर यातनाओं से भरा हुआ है। लेखिका ने नारी जीवन की उन उन्मुक्त आकांक्षाओं को उपन्यास के माध्यम से सामने रखा है जो समाज के परंपरागत ढांचे में दब चुकी स्त्री के अंतर्मन में उसकी पहचान को ढूंढने की छटपटाहट में ही दम तोड़ देती है। लेकिन कठगुलाब की ये स्त्रियां नियति के आगे विवश होकर घुटने टेक देने से इनकार करतीं हैं। ये स्त्रियां अपने अस्मिता की खोज में पुरुषवादी शोषण से संघर्ष करती हैं और परिस्थितियों से लड़ते हुए अपने आत्मसम्मान की रक्षा करने का साहस भी रखतीं है। मृदुला गर्ग का यह उपन्यास नारी मुक्ति की संभावनाओं की पड़ताल करता है। स्त्री के दमन और शोषण की प्रकृति का चित्रण करते हुए कथानक किसी स्थान विशेष तक सीमित न रह कर भोगौलिक सीमाओं का अतिक्रमण कर जाता है। लेखिका ने नारी जाति के साथ पुरुषवादी मानसिकता के दोहरे माप

स्त्री (कविता)

हमने एक छत के बदले में तुम्हारा आसमान छीन लिया तुम्हारी जमीन तय कर दी और खींच दी एक लक्ष्मण रेखा जिससे तुम्हारा बाहर निकलना वर्जित है। बांट दिए तुम्हारे हिस्से में वो सारे काम जिन्हें करने के लिए घोंटना पड़ता है अपने सपनो का गला। और जब तुमने अपनी परिधि स्वीकार कर ली तुम सबसे पहले जागी, सबसे अंत मे सोई और सबके बाद भोजन किया। और हमने तुम्हे गौरवान्वित किया कि तुम एक महान कर्तव्य के लिए त्याग कर रही हो। तुम्हारे लिए मंत्र, श्लोक और गीत रचे और तुम्हारी पूजा शुरू कर दी। हमने तुम्हे ईश्वर बना डाला और तुमने भूला दिया कि तुम भी एक इंसान हो। - suyash mishra 'sajal'

पिता की याद में

बचपन की ज्यादातर स्मृतियों का धूमिल होना नियत है। निर्ममतापूर्वक कुछ स्मृतियाँ हमसे हाथ छुड़ा कर सदा के लिए विदा ले लेतीं हैं। मेरी माता का निधन मेरे जीवन में एक ऐसी अनिर्वचनीय घटना है जिसका ठीक-ठीक अर्थ मैं आज तक समझ नही पाया हूँ। यह त्रासदी तब घटित हुई जब मेरी आयु मात्र तीन वर्ष की थी। मुझे अपनी माता का चेहरा बिल्कुल याद नही लेकिन फिर भी अपने जीवन के ममता भरे उन तीन सालों में अर्जित एक स्मृति ऐसी है जिसे मैं आज तक नही भूल पाया हूँ- माँ की गोद का सानिध्य और मेरी उंगलियों में उलझा उनका आँचल। मेरी विडंबना यह रही कि आज तक मैं यह तक कल्पना नही कर पाया हूँ कि यदि मेरी माता जीवित रहतीं तो मैं उन्हें 'माँ' कहकर संबोधित कर रहा होता या 'मम्मी' या कुछ और? साथ ही कभी-कभी अपनी मानसिक निर्मित्ति में मैं उन विभिन्न परिस्थितियों की कल्पनाएँ करता हूँ जहां मेरी माँ मुझसे बातें कर रही होती हैं और मैं तय नही कर पाता हूँ कि माँ मुझसे कैसी बातें करतीं, और फिर एक के बाद एक परिदृश्य बदलते रहते और अचानक वास्तविक आनुभविक जगत में कोई हलचल इस मानसिक निर्मित्ति को भंग कर देती और