सुनत श्रवन बारिधि बंधाना। दस मुख बोलि उठा अकुलाना।।
बाँध्यो बननिधि नीरनिधि जलधि सिंधु बारीस ।सत्य तोयनिधि कंपति उदधि पयोधि नदीस ।।
रावण का पूरा स्टेटस डर की बुनियाद पर खड़ा था।
जब रावण को मन्दोदरी ने समझाया कि सीता को वापस भेज कर अपने प्राण बचवा लो तब बड़े अभिमान के साथ रावण कहता है
"जिनके प्राण बेचारे समुद्र के बीच में आ जाने की वजह से मुझसे बचे हुए हैं, उनसे मेरी स्त्री भय खा रही है, बड़ी हँसी की बात है।"
कुछ लोग इसी तरह के फेक कॉन्फिडेंस से माहौल बना के रखते हैं भले ही अंदर से दिल मारे डर के कांप रहा हो। रावण का आत्मविश्वास कितना नकली था यह इस बात से पता चल जाता है जब उसी बेचारे समुद्र पर सेतु का बाँधा जाना कानों से सुनते ही रावण घबड़ाकर दसों मुखोंसे बोल उठा------
वननिधि,
नीरनिधि,
जलधि,
सिंधु,
वारीश,
तोयनिधि,
कंपति,
उदधि,
पयोधि,
नदीश
को क्या सचमुच ही बाँध लिया?
पूरे रामचरितमानस में रावण के मुख से निकले कौतुक भरे ये शब्द अलग ही लेवल के हैं। डर का आलम यह है कि दसों मुखों से दस अलग-अलग सम्बोधन निकलते हैं। रावण समझ चुका था उसे मारने वाला अब उसके दरवाजे पर खड़ा था।
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