Skip to main content

मानस प्रसंग (3)

महाकाल की बरात
 जिस वर को पाने के लिए भवानी कठोर तपस्या कर रहीं हैं वह स्वयं समाधि में बैठे हुए हैं। एक दामाद के रूप में त्रिपुरारी की कल्पना करके उमा का परिवार, विशेषकर माता, अत्यंत दुःखी है। क्योंकि नारदजी कह गए कि  योगी, जटाधारी, निष्कामहृदय, नंगा और अमङ्गल वेषवाला, ऐसा पति इसको मिलेगा। इसके हाथ में ऐसी ही रेखा पड़ी है। और नारद के वचन कभी मिथ्या नही होते। 

संसार में जिनका कोई नही उन अनाथों के नाथ तो स्वयं शिव है लेकिन शिव का कौन है? वैरागी शिव को विवाह के लिए कौन मनाएगा? समाज में ऐसे एकाकी लोगों का एक बेस्ट फ्रेंड होता है जो इन सब मामलों में माता-पिता या परिवार की भूमिका निभाता है। हर के विवाह में यह रोल स्वयं हरि निभा रहे हैं। उन्होंने शिव को समाधि से जगाया और उनसे यह वरदान लिया कि शिव उमा से विवाह जरूर करेंगें। ध्यान देने योग्य बात है कि ईश्वर किसी की साधना से प्रसन्न होकर वर देते हैं लेकिन महाकाल के सामने प्रकट होकर नारायण स्वयं वर मांग रहे है हैं। ऐसे औढरदानी है शिव, विवाह के लिए तैयार हो गए। अब नारायण अपने प्रिय मित्र के विवाह में पूरा आनंद लेने का मन बना चुकें हैं ।

महाकाल शिव तो वैसे भी भोले हैं उसपर उनके गणों ने उनका श्रृंगार किया है सांपों से, भस्म से और चंद्रमा से। वस्त्र के नाम पर बाघम्बर और सवारी बैल। ऐसे में श्री नारायण यह मौका कैसे छोड़ सकते हैं। वैसे भी नारद मुनि ने विष्णुजी को श्राप देते वक्त क्रोध में उनकी एक यह भी विशेषता बतलाई थी कि 

परम स्वतंत्र न सिर पर कोई । 
भावइ मनहि करहु तुम्ह सोई ⁠।⁠।

तुम परम स्वतन्त्र हो, सिरपर तो कोई है नहीं, इससे जब जो मनको भाता है, वही करते हो।

तो भोलेनाथ के बरात में जब विष्णु जी ने देवांगनाओं को यह कहते सुना कि इस वर के योग्य दुल्हन तो संसार में नही मिलेगी....

बिष्नु कहा अस बिहसि तब 
बोलि सकल दिसिराज ⁠।
बिलग बिलग होइ चलहु सब 
निज निज सहित समाज ⁠।⁠।⁠

तब विष्णुभगवान्‌ने सब दिक्पालों को बुलाकर हँसकर ऐसा कहा—
सब लोग अपने-अपने दलसमेत अलग-अलग होकर चलो ⁠।⁠।

बर अनुहारि बरात न भाई । 
हँसी करैहहु पर पुर जाई ⁠।⁠। 
बिष्नु बचन सुनि सुर मुसुकाने। 
निज निज सेन सहित बिलगाने ।⁠। 

हे भाई! हमलोगों की यह बरात वरके योग्य नहीं है। क्या पराये नगर में जाकर हँसी कराओगे? विष्णुभगवान्‌ की बात सुनकर देवता मुसकराये और वे अपनी-अपनी सेनासहित अलग हो गये ⁠।⁠।

मनहीं मन महेसु मुसुकाहीं । 
हरि के बिंग्य बचन नहिं जाहीं ⁠।⁠।

अपने प्यारे मित्र को यह मनोहर चरित्र करते देख महाकाल भी मुस्कुरा उठे की हरि भी मजे लेना नही छोड़ते है।

इसके बाद तो महाकाल ने भी अपने गणों को आज्ञा दे दी कि अपनी भयंकर वाली टीम को देवताओं के मनोहर समाज से अलग कर के चलो ताकि सबको मालूम हो कि
दूल्हे की बिरादरी में कैसे-कैसे परम् तत्व शामिल हैं।
इसके बाद जो बरात का दृश्य है उसके बारे में क्या कहें?
स्वयं महाकाल अपने शिष्टमंडल को देख मुस्कुरा दिए। बस आनंद लीजिए इस अद्भुत बरात का .....

कोउ मुखहीन बिपुल मुख काहू ।
बिनु पद कर कोउ बहु पद बाहू ⁠।⁠। 
बिपुल नयन कोउ नयन बिहीना । 
रिष्टपुष्ट कोउ अति तनखीना ⁠।⁠।

कोई बिना मुख का है, किसी के बहुत-से मुख हैं, कोई बिना हाथ-पैर का है तो किसी के कई हाथ-पैर हैं। किसी के बहुत आँखें हैं तो किसी के एक भी आँख नहीं है। कोई बहुत मोटा-ताजा है तो कोई बहुत ही दुबला-पतला है ⁠।⁠।

तन खीन कोउ अति पीन पावन 
कोउ अपावन गति धरें ⁠। 
भूषन कराल कपाल कर 
सब सद्य सोनित तन भरें ⁠।⁠। 
खर स्वान सुअर सृकाल मुख 
गन बेष अगनित को गनै ⁠। 
बहु जिनस प्रेत पिसाच जोगि 
जमात बरनत नहिं बनै ⁠।⁠।

कोई बहुत दुबला, कोई बहुत मोटा, कोई पवित्र और कोई अपवित्र वेष धारण किये हुए है। भयङ्कर गहने पहने हाथमें कपाल लिये हैं और सब-के-सब शरीर में ताजा खून लपेटे हुए हैं। गधे, कुत्ते, सूअर और सियार के-से उनके मुख हैं। गणों के अनगिनत वेषों को कौन गिने? बहुत प्रकार के प्रेत, पिशाच और योगिनियों की जमातें हैं। उनका वर्णन करते नहीं बनता।

नाचहिं गावहिं गीत 
परम तरंगी भूत सब ⁠। 
देखत अति बिपरीत 
बोलहिं बचन बिचित्र बिधि ⁠।⁠।⁠ 

भूत-प्रेत नाचते और गाते हैं, वे सब बड़े मौजी हैं। देखने में बहुत ही बेढंगे जान पड़ते हैं और बड़े ही विचित्र ढंग से बोलते हैं ⁠।⁠।⁠

जिन लड़कों को जीजाजी के अग्रिम दर्शन करने की अभिलाषा थी उन्होंने उल्टे पैर भाग कर बरात का वर्णन कुछ इस प्रकार से किया

कहिअ काह कहि जाइ न बाता । 
जम कर धार किधौं बरिआता ⁠।⁠। 
बरु बौराह बसहँ असवारा । 
ब्याल कपाल बिभूषन छारा ⁠।⁠। 

क्या कहें, कोई बात कही नहीं जाती। यह बरात है या यमराजकी सेना? दूल्हा पागल है और बैलपर सवार है। साँप, कपाल और राख ही उसके गहने हैं ⁠।


तन छार ब्याल कपाल भूषन
नगन जटिल भयंकरा ⁠। 
सँग भूत प्रेत पिसाच जोगिनि 
बिकट मुख रजनीचरा ⁠।⁠। 
जो जिअत रहिहि बरात देखत 
पुन्य बड़ तेहि कर सही ⁠। 
देखिहि सो उमा बिबाहु घर घर 
बात असि लरिकन्ह कही ⁠।⁠। 

दूल्हे के शरीर पर राख लगी है, साँप और कपाल के गहने हैं; वह नङ्गा, जटाधारी और भयङ्कर है। उसके साथ भयानक मुखवाले भूत, प्रेत, पिशाच, योगिनियाँ और राक्षस हैं। जो बरात को देखकर जीता बचेगा, सचमुच उसके बड़े ही पुण्य हैं और वही पार्वती का विवाह देखेगा। लड़कों ने घर-घर यही बात कही।

Comments

Popular posts from this blog

मानस प्रसंग (4)

हम रामचरितमानस को धार्मिक दृष्टि से देखने के पक्षपाती हैं इसीलिए इस महाकाव्य के उन असाधारण प्रसंगों का मूल्यांकन नही किया जाता है जो अपनी अंतर्वस्तु में लौकिक और मार्मिकता से संपृक्त हैं। जैसे, तुलसीदास जी ने वाल्मीकि रामायण से आगे बढ़कर मानस में जनक वाटिका के राम-सीता मिलन के प्रसंग का सृजन कर स्वयंवर को शक्तिपरीक्षण के स्थान पर प्रेम-विवाह के मंच के रूप में स्थापित किया। अतः मानस को केवल भक्तिकाव्य के रूप में देखे जाने से उसके बहुत सारे पक्ष गौण हो जाते हैं जो मानवीय दृष्टि से हमारे लिए प्रतिमान हैं, जिसमे एकनिष्ठ प्रेम के आदर्श हैं, अपने जीवनसाथी से बिछुड़ने की पीड़ा है, उसके लिए किसी भी सीमा को लांघ जाने का साहस है। तुलसीदासजी ने मानस रचना की प्रक्रिया में अपने काल का अतिक्रमण कर ऐसी प्रगतिशील समन्वयवादी दृष्टि को साधा जिसके कारण किसी भी विचारधारा के आलोचक उन्हें ख़ारिज करने का साहस नही कर सके। आज के मानस प्रसंग की कड़ी में लंकाकाण्ड के पृष्ठों से उद्घाटित सीता-त्रिजटा संवाद का यह अंश भी ऐसा ही अद्भुत कोटि का प्रसंग है जिसे पहली बार पढ़कर आप भी आश्चर्यचकित हो उठेंगे।  लंकाकाण

पचपन खंभे लाल दीवारें (उषा प्रियंवदा)

‘पचपन खंभे लाल दीवारें', हिंदी साहित्य में नवलेखन के दौर की बहुचर्चित लेखिका उषा प्रियम्वदा का प्रथम उपन्यास है। उपन्यास की मुख्य चरित्र 'सुषमा' एक मध्यवर्गीय परिवार की अविवाहित युवती है। वह अपने घर की नाजुक आर्थिक परिस्थितियों की वजह से घर से दूर हॉस्टल में रहते हुए कॉलेज की नौकरी कर रही है। सुषमा अपने परिवार की जिम्मेदारियों का निर्वहन करते हुए, यौवनावस्था का अतिक्रमण कर कब तैंतीस वर्ष की हो जाती है उसे स्वयं भी पता नहीं चल पाता है। सुषमा अकेली है, वह अपना अकेलापन बांटने के लिए एक जीवन साथी के साहचर्य की आकांक्षा को मन ही मन साकार करने के स्वप्न देखती है। लेकिन अपने दायित्वों के बोझ तले वह इतना दबी है कि विवाह के बारे में सोचने में भी वह एक तरह का अपराधबोध महसूस करती है।  सुषमा अपने से कम उम्र के नील से प्रेम करती है। नील उसे पसंद करता है, उसकी देखभाल करता है और हर दृष्टि से उसके जीवन मे व्याप्त सूनेपन को दूर करने में उसका हमसफर बन सकता है लेकिन, सुषमा सामाजिक मर्यादाओं के उल्लंघन और भाई-बहन के भविष्य की चिंता के दुष्चक्र में इतने गहरे धंस चुकी है कि उसे जीवन मे अपने नि

लौट चलो

सुनो अवनी की उन  कातर चीत्कारों को, जो मांग रही हमसे क्षमा अपने नैसर्गिक प्रेम को बांटने के अपराध में। सुनो विलाप करती हुई उस धरती का लोमहर्षक रुदन, जो दे रही हमे चेतावनी। मनुष्य! रोक दो अपनी क्षुधातुर एषणा के रथ को अन्यथा सूख जाएंगे सरिता के स्त्रोत और बुझ जाएगी प्यास  सदा के लिए। मिट जाएगा हवा और  जहर का भेद। फूल से कुम्हला जाएंगे  बच्चों के फेफड़ें। जीवन गर्भ में आते ही  दम तोड़ देगा। मर जाएंगे पर्वत,  सड़ जाएगा समुद्र और मिटा देगा दावानल  जंगलों को सदा के लिए। मढ़ा जाएगा असंख्य जीवहत्या  का पाप तुम्हारे सर और  मुक्त नही होगा मनुष्य इस  महापातक से कल्पों तक। पिघला दो सभी गाड़ियों का लोहा और भर दो ज्वालामुखी की दरारों में। इकट्ठा करके प्लास्टिक के पहाड़ चुनवा दो उसे पत्थर की दीवार से। झोंक दो वे सारे उपकरण, जो तुम्हें देते हैं आनंद  सुलगती हुई धरती की कीमत पर। बंद कर दो फैक्ट्रीयां और उनमें बनने वाले रसायन, इस हलाहल को नदियां