मैट्रो में बैठे हुए
कानों को हेडफ़ोन से झाँपकर
बगल वाले से दूरियाँ नापकर
हम सुन रहे संगीत
उस असफलता का
जिसमें घिर गया है मनुष्य
एक श्रेष्ठताबोध से या
किसी कुंठाजनित अवरोध से।
फेसबुक खोल कर
तेजी से स्क्रॉल कर
देख रहें उस खबर पर
प्रतिक्रिया क्या है।
हमने और किया क्या है?
आशंकाओं से डर-डर कर
दृष्टि जाती प्रत्येक खबर पर।
कोई घबराए, डर जाए,
रोते हुए अपने घर जाए
या मर जाए,
हम तठस्थ।
काम में व्यस्त
अपनी उपलब्धियों पर खुश
ये मनहूस
हमारी भस्मासुरी अहंकारी सोच
जला कर राख कर देती है
उस एक संवेदना को
जो दूसरों में भी
जिजीविषा से भरा
अपने जैसा ही एक
मनुष्य देख सके।
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